पत्थर की अभिलाषा
पत्थर की अभिलाषा
पत्थर की अभिलाषा
होती है यही सदा
बनकर पत्थर कंगूरे का
पाये स्थान वो सबसे ऊपर
यहाँ भी कुछ अलग नहीं है
अंतर इक सोच का
सवाल उठता है फिर
बने पत्थर कौन नींव का
नीचे रहकर समर्पण करना
खुद की पहचान मिटाकर
गुमनाम होकर नींव में
अपने को मिटाना
निस्वार्थ भाव से अपने को
नींव का पत्थर बनाना
हाँ होते हैं कुछ पत्थर
ऐसे ही इनमें भी
जो कंगूरों पर लगकर
चमकना नहीं चाहते
जो बनकर नींव का पत्थर
अपनी चमक बिखेर जाते हैं
मिटाकर खुद को वो
कंगूरे के पत्थर को
ऊपर कर जाते हैं
महानता अपनी दिखाते है
ऐसे ही कुछ वीर
इतिहास में बनकर
पत्थर नींव का हमारे
कंगूरे के पत्थरों को
आज भी चमकाते हैं