प्रॉन्प्ट 23(पेंट बाय
प्रॉन्प्ट 23(पेंट बाय
क्या किसी दिन ऐसा हो सकता है जबकि
नदियां शुद्ध और स्वच्छ हों
पवन प्रदूषण मुक्त हो।
प्रकृति के खुले हुए खजाने भी मदमस्त हों।
भंवरे भी गीत गुनगुनाते हो।
कमल भी खिलकर अपनी अलग छटा दिखाते हो।
ऊंचे ऊंचे वृक्ष भी यूं ही हाथ हिलाते हों।
सीमा ना तोड़े सागर कभी।
परमात्मा को ना भूलें सभी।
आएगा क्या कभी समय ऐसा?
जब शहरों से लोग करेंगे गांव की ओर रुख।
प्रेम और संस्कार सब में हो और प्रत्येक प्राणी हो संतुष्ट।
आसमान से भी खुशियों की वर्षा बरसे।
किसी का भी मन किसी भी चीज को ना तरसे।
तुलना कभी कोई किसी से न करे।
इंसानियत कभी किसी की भी ना मरे।
क्या होगा कभी यह स्वपन सच मेरा।
जहां धूंआ केवल हवन की अग्नि का हो।
प्रदूषण के धुएं का नामोनिशान भी ना।
खुली हवा में सांस ले सब
शीतल और निर्मल जल की कमी ना हो।
गंगा सी नदियां खुल कर बहें।
कोई भी पक्षी विलुप्त ना हो
चिड़ियों की चहचहाहट बनी रहे।