STORYMIRROR

Neeraj pal

Abstract

4  

Neeraj pal

Abstract

प्रकृति।

प्रकृति।

1 min
327

हम से भले वह प्राणी अच्छे, जो मुख से कुछ न कह पाते हैं।

 कितने जुल्म वह हमारे हैं सहते, फिर भी कुछ हम समझ न पाते हैं।।


 स्वार्थी बना मानव कितना, वर्षों के सपने वह बुनता है।

 वर्तमान को ताक पर रखकर, भूत, भविष्य की चिंता करता है।।


 प्रकृति के उन प्राणी से कुछ सीखें, जो सर्वस्व अपना लुटाते हैं।

 मानव की दशा को तो देखो, गैरों के हिस्से पर घात लगाते हैं।।


 अमूल्य जीवन प्रकृति है देती, उस पर न गौर करता है।

 कष्टमय जीवन खुद मानव चुनता, छेड़खानी जो इससे करता है।।


 भौतिकवादी बना मानव, प्रकृति की भाषा नहीं समझता है।

 संचय करना ही उसने सीखा, परोपकार कुछ नहीं करता है।।


 पंच-तत्व से बना प्राणी, प्रकृति बिन मूल्य उसे लुटाती है।

 फिर भी उसे अक्ल नहीं आती, जो पल-पल आगाह करती है।।


 परोपकार, परमार्थ मानव क्या जाने, स्वार्थी बना संसार है।

 उसी का परिणाम आज भुगत रहा, विश्व में छाया अंधकार है।।


 हर चीज का अस्तित्व है जग में, क्यों करता इसका तिरस्कार है।

 अब न चेता, तो कब चेतेगा, जग में मचा हाहाकार है।।


 प्रकृति ही हमें संदेश है देती, वह देती सब को वरदान है।

 समय रहते "नीरज" अब भी संभल जा, क्यों करता अपना नुकसान है।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract