प्रकृति से प्यार करो
प्रकृति से प्यार करो
फिर जगत में मानवता का संचार करो
तू सम्पति से नहीं, प्रकृति से प्यार करो
तूम हिंसा से नाता तोड़ो
पशु-पक्षी से रिश्ता जोड़ो
तू अन्याय का राज खोलो
अपने को सत्कर्म पे मोड़ो
तुम ठहरो कुछ सोचो और विचार करो
तू सम्पति से नहीं, प्रकृति से प्यार करो
तू असहायों का मदद करो
वृद्ध लाचारों का दुःख हरो
तू दीपक सा खुद ही जलो
सभी में उमंग रसधार भरो
तुम सभ्य मानव हो इतना उपकार करो
तू सम्पति से नहीं, प्रकृति से प्यार करो
तू परंपरा से कदम मिलाओ
बच्चों को धैर्यवान बनाओ
तू यहाँ आदर भाव जगाओ
अपना देश का मान बढ़ाओ
तु बुद्ध,गांधी हो अहिंसा का प्रचार करो
तू सम्पति से नहीं, प्रकृति से प्यार करो
तू जाति-धर्म के बंधन भूलो
मानव को एक धागे में गुंथो
तू पत्थर और काँटो में खिलो
मधुप-सा सभी फूलो पे झूलो
तु सत्य का योद्धा हो कुव्यवस्था पर प्रहार करो
तू सम्पति से नहीं, प्रकृति से प्यार करो
तुझे सही को सही कहना होगा
गलत के खिलाफ लड़ना होगा
तभी राष्ट्र से अत्याचार हटेगा
विश्व में भारत का मान बढ़ेगा
तू आगे बढ़कर,देशहित में कुछ काम करो
तू सम्पति से नहीं,इस प्रकृति से प्यार करो