प्रकृति ने ली अंगडाई
प्रकृति ने ली अंगडाई
इंसानों ने अपनी प्रकृति इतनी बदली,
कि हमारी प्रकृति ने भी नजरें फेर ली।
निर्मल जल था हमारी प्रकृति का इतना,
मनुष्य प्रतिविंब देख सके स्वच्छ उतना।
पर्यावरण ने बेहिसाब दिया था हमको,
पर हम लालची हो कर भूले सबको।
पक्षी कलरव करते, जंतु विचरण करते,
धरती, अंबर, जल इनके के भी थे हिस्से।
हमने सोचा कोई नहीं बलबान हमसा,
पर यह भ्रम था कोरा था हम सबका।
प्रकृति ने अंगड़ाई ली जरा सी हल्की,
खत्म हुई अकड़ाई-चतुराई हम सबकी।
कैद हुए हम सब अपने घर में भय से,
घूम रहे जलचर, थलचर, नभचर निर्भय।