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Rakesh Kumar Singh

Inspirational

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Rakesh Kumar Singh

Inspirational

प्रकृति मित्र

प्रकृति मित्र

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क्या लिखूं मेरी लेखनी रुक सी गई है आज।

रूंध गया है कंठ मेरा, निकले ना आवाज।।

जिसका भय था ओ हुआ है, आज के इस दौर में।

विकल विह्वल है वसुधा, क्या हुआ चहुंओर ये।।

ये महामारी है भारी, जानलेवा है बीमारी। 

ना जाने यह भेद कोई राजा हो या हो भिखारी।। 

जिंदा रहने के लिए प्राणवायु चाहिए। 

यह धरा पर आए कहां से, कोई तो बतलाइए।।

विटप काटा वन उजाड़ा क्या-क्या जुल्म किया।

मैं प्रकृति का प्रकृति मेरी क्यों ना ध्यान दिया।।

देखो प्रकृति हमारी हमको क्या क्या नहीं दिया।

सूरज दिया, चंदा दिया, तारों का दल दिया।

सागर दिया, सरिता दिया, पीने को जल दिया।।

वन दिया, उपवन दिया, सुंदर यह थल दिया।

पर्वत दिया, झरना दिया, नीला गगन दिया है।।

है गर्व जिस पर सबको निर्मल ये तन दिया।

सब कुछ दिया प्रकृति ने कुछ भी नहीं लिया।।

हरी-भरी वसुधा हो मेरी, ऐसा कुछ कर जाएं हम। 

धरती के श्रृंगार को मिलकर, आओ आज बचाएं हम।।

करें प्रकृति की सदैव रक्षा, अपना धर्म निभाएं हम। 

कहे 'रत्न' चिर निद्रा त्यागो, मिलकर कदम बढ़ाए हम।।

प्रकृति मित्र बनकर के आओ, घर-घर पौधे लगाए हम।।

                         

                 


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