परिवार की कथा
परिवार की कथा
छोटा सा परिवार था प्यारा
चार सदस्यों से उजियारा,
आकर बसा गांव से शहर
बीते सुख में चार पहर।
बूढ़े बाबा रह गए गांव
बैठे रहते नीम की छांव,
धीरे-धीरे बीता काल
बीमारी से हुए बेहाल।
लाना पड़ा उन्हें शहर
देखभाल की शामो-सहर,
बेटा करता सेवा नित
प्यारा पोता हुआ प्रमुदित।
पत्नी ने फिर किया बवाल
रोज करे वह ढेर सवाल,
दूर करो इस कृशकाया को
मुझे नहीं रहना ससुराल।
बार-बार समझाने पर भी
घर में रहने लगा क्लेश,
हाथ पकड़ अपने बाबा का
वृद्धाश्रम में किया प्रवेश।
पीछे-पीछे रोते-रोते
बहू और पोता पहुंचे,
लौट आइये अपने घर में
हम हैं आपके बच्चे।
सुबह का भूला शाम को वापस
गर जल्दी ही आ जाए,
उस कुटुम्ब के बंधन को तो
अरे कोई ना तोड़ पाए।