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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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परिजन

परिजन

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माँ की लोरी, वो दूध की कटोरी

हाथों की थपकी, वो नींद की झपकी

ज़ोर से रोने पर, माँ का भाग के आना

याद आता है माँ , तेरे हाथों का खाना

माँ का आँचल , ओढ़ कर छुपना

माँ से कई अटपटे सवाल पूछना

उन बचकाने सवालों पर

माँ का हँसना ऐसा लगता है ,

जैसे था कोई सपना मातृ दिवस

हर साल आता रहेगा

कोई न कोई माँ पर कविता

सुनता रहेगा पर माँ जीवन

में बस एक बार मिलती है

ईश्वर से भी ज्यादा माँ को

प्यार करना माँ -बाप को

कभी बोझ ना समझना। 


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