परिजन
परिजन
माँ की लोरी, वो दूध की कटोरी
हाथों की थपकी, वो नींद की झपकी
ज़ोर से रोने पर, माँ का भाग के आना
याद आता है माँ , तेरे हाथों का खाना
माँ का आँचल , ओढ़ कर छुपना
माँ से कई अटपटे सवाल पूछना
उन बचकाने सवालों पर
माँ का हँसना ऐसा लगता है ,
जैसे था कोई सपना मातृ दिवस
हर साल आता रहेगा
कोई न कोई माँ पर कविता
सुनता रहेगा पर माँ जीवन
में बस एक बार मिलती है
ईश्वर से भी ज्यादा माँ को
प्यार करना माँ -बाप को
कभी बोझ ना समझना।