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Vedika Verma

Romance

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Vedika Verma

Romance

प्रीतम मेरे कंचन प्रभा

प्रीतम मेरे कंचन प्रभा

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प्रीतम हो तुम मेरे

मैं हूँ प्रियतमा तुम्हारी

देख तुम्हारा हृदय प्रेम

मुदित हो मंद मंद मुस्कती मैं 

प्रेम पयोधि हृदय तुम्हारा

मैं बसी हूँ उसी हृदय में 

और विरह-वेदना सोच घबराती मैं 

रंग कंचन का, नीरज की सौम्यता

तुझमें सुरभि गुलाबों की है

कान्त शमश्रु देख देख इतराती मैं 

अतुल लसित सौन्दर्य तुम्हारा

लावण्य रसिक कामदेव की है

अनुपम स्पर्श पा कर शरमाती मैं 

प्रेम की उदधि 

तेरा सस्मित बदन

और मुकुल सा उर्मि देख देख ललचाती मैं 

प्रियतम मुझको हृदय लगा लो

इस मृगतृष्णा को दूर करो 

हर सांझ सबेरे विरह प्रणय गीत गाती मैं 

सुषुप्ति मिलन स्वपन में 

जब जब होता प्रीतम से

देख दृग की प्रेमरस समीर सी लहराती मैं 

मन में कौतूहल जागता जागता कौमुदी में 

स्निग्ध हृदय निस्पंद सोचता जाता 

और देख देख तुझको प्रेम सुधा बरसाती मैं 

 


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