प्रहरी
प्रहरी
मैं लड़ रहा हूँ खुद से
इंसान की तलाश में
संविधान की राह में
क्रांति की चाह में
निष्पक्षता की मांग में
मैं चल रहा हूँ जमीर से
गांधी की खोज में
अम्बेडकर की सोच में
भगतसिंह की शान में
बिरसा के सम्मान में
मैं बोल रहा हूँ बदनीयत
नारी के अत्याचार में
बेमानी के बाजार में
व्यक्ति के ईमान में
जनता के विश्वास में
मैं देख रहा हूँ गलतियां
मंच के खिलाफ में
व्यक्तित्व के साथ में
गुनाह के विकार में
राष्ट्र के सरोकार में
मैं देश देख रहा हूँ
नागरिक प्रहरी की तरह।