प्रेमिका :छवि
प्रेमिका :छवि
काम कुमुद की अभिलाषा तुम, हस्ती सी मतवाली हो,
करुण-ममता की परिभाषा तुम, हिय को भेदने वाली हो।
प्रेम पंक्ति मैं लिखूं प्रेम भर, या फ़िर उसमें डूब जाऊँ,
मर जाऊँ या तर जाऊँ, स्वप्न परिलक्षित कर जाऊँ।
चमक रही है नाक नाथूनी, चमक रहा मदन सारा,
शोभित है चांदनी पर, गर्विता है दिग्धारा।
ये वस्त्र आभूषण की शोभा, जो भी है, वो तुमसे है,
ये टिमटिमाते तारे हैं, पर इनकी आभा तुमसे है।

