राष्ट्र प्रेम: उद्गारो में
राष्ट्र प्रेम: उद्गारो में
अधर तल तरंगों पर किरणों सा दौड़ता हूँ,
हर क्रांति में शांति का जीता ज्येता विजेता हूँ।
अग्र दूत साथ मैं, शांति नाव का नाविक हूँ,
ज्वलंत ज्वाला कर्म वीर, मैं अनिक हूँ,
ज्वलंत ज्वाला धर्म वीर, मैं सैनिक हूँ। ।
प्रकृति विपदा नर दुःख, कष्ट हरने को,
खड़ा हुआ नि:स्वार्थ,धर्म कर्म करने को l
है बाहु विशाल, धरा कल्याण पथिक हूँ,
ज्वलंत ज्वाला कर्म वीर, मैं अनिक हूँ ,
ज्वलंत ज्वाला धर्म वीर, मैं सैनिक हूँ। ।
जब टूटते बन काल, अरि बेहाल करने को,
बांध कफन, सिर मौर ,शत्रु संहार करने को।
लेते सिर झुका कर, कर जोड़, मान बल धर अधिक हूँ,
ज्वलंत ज्वाला कर्म वीर, मैं अनिक हूँ ,
ज्वलंत ज्वाला धर्म वीर, मैं सैनिक हूँ। ।
अरे...कौन कहता है...ये मिट्टी है,
स्पर्श तो इसका माँ-सा है,
किये होंगे पिछले जन्म में हमने कई कार- ए- शबाब ,
तब जाकर मिला होगा, ये वतन, जो बाप सा भी हैं। ।
कोई इश्वा मेरे जज्बातों को झकझोरना क्या? छु भी पाएगी?
यहां तबो ताव ए सेवा ए दिलबरी ,वतन से है। ।
ख्वार में कभी कभी अनायास विचार आ जाता है,
पर जब शिद्दत से सोचता हूं तो..सबसे ऊँची चोटी शहादत को पाता हूँ। ।
रेग्जार ए आरज़ बेशक चलना, कठिन है,
पर आसाँ किसे भाता हैं?
यूँ तो बाजार में हजारों रंगों की चादरें बिकती हैं ,
पर तीन रंगों के लिए कार ए नुमाया करना पड़ता है। ।
हाथों में गर तेरी नर्मी है, आलस का है तू पहाड़ लिए,
कामनाएँ भी अभिव्यंजित हैं, अकर्मण्यता का सार लिए,
तो सावधान हो जा ए......मानुष!
चेतन यम है शर साध लिए..क्युकि,
शिराओं में रक्त शोला बन उमड़ना चाहिए,
आंखों में, महामृत्युंजय का सा भाव चाहिए,
वेदना से जल पान कर, कांटों से तू स्नान कर,
पथ शूलों की माला बना, पूर्वजों का सम्मान कर l
गर खपना ही है भूमि में, तो डर काहें का मृत्यु से,
कर घोर चीत्कार ऐसा प्रवर भू मंडल हिलना चाहिए। ।
