प्रेम
प्रेम
मैं जल तुम शक्कर,
दोनों एक दूजे में घुलना चाहें,
मगर प्रेम की चाशनी बनेगी कैसे,
अगर हम ताप से ही बचना चाहें
कुछ हलचल होगी ज़रूर,
बुलबुलें बनेंगे सैकड़ों,
बदलेंगे रूप दोनों के,
घुलेंगे जब एक दूजे में
तैयार होगा ये प्रेम रस,
एक नया रंग लिए,
बन के सौगात समर्पण की,
जल का शक्कर
और
शक्कर का जल
के लिए।