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Minal Aggarwal

Abstract

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Minal Aggarwal

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प्रेम राग

प्रेम राग

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रेशम से केश मेरे 

रेशम के धागों से बुने जज्बात 

फिसल रहे हैं 

तन मन से मेरे ऐसे जैसे 

गिर रहे हों सांझ के कंधे पर 

दिन और 

हाथ उठाकर 

आगे बढ़कर उसे 

गले लगा रही हो रात 

सूरज की तपिश पिघलेगी तो 

रात को आसमान में फिर 

चमकेंगे चांद से चमकीले मेरे 

ख्यालात 

एक चांद का सुनहरा ख्वाब 

बनकर 

तुम आ बसना 

चांदनी की बाहों में 

सुना देना उसके 

कानों में 

गुनगुनाता सा 

भंवरे सा गुनगुन करता 

कोई मखमली से प्यार का 

गुदगुदाता सा अहसास का प्रेम राग।



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