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GUDDU MUNERI "Sikandrabadi"

Abstract

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GUDDU MUNERI "Sikandrabadi"

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प्रेम का अहसास हुआ था

प्रेम का अहसास हुआ था

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वो स्कूल के दिन थे 

हम नादान ना समझ 

बस पढने ही जाते थे,

ये प्रेम क्या होता है 

शिक्षक हमे समझाते थे,


सुबह दुआ और 

प्राथना हुआ करती थी,

तब शायद पसंद की 

कोई लड़की हुआ करती थी ।


आनन्दी देवी पब्लिक स्कूल 

वह एक प्राइवेट स्कूल था,

आज भी शिक्षा का रूप लिये 

ए.डी.पब्लिक के नाम से मशहूर है 

जैसे कि विद्या मे नूर है ।


दाखिले बढ़ते जा रहे थे 

स्कूल मे कमरे बढ़ते जा रहे थे 

छात्रो की संख्या मे इजाफा था 

शायद प्रेम का अहसास आधा था,


तब एक छात्रा, 

छात्रो की ड्रेस से बिना मेल खाए 

सादे कपड़े पहने हँसती हुई नजर आई,

मेरी आंखें उसे देखकर 

समझो जाम नजर आई 

तब होश आया तो 

वो कहीं और नजर आई ।


 मै 6वीं क्लास का छात्र था 

वो 5वी क्लास की छात्रा थी 

मेरी क्लास आमने 

उसकी क्लास सामने थी,


हर दिन वह मुझे नजर आती रही 

जैसे बस वही खास हो 

छात्रो को मेरा नजरिया 

नजर आने लगा था 

मै बचता बचाता उसे चाहने लगा था ।


वो सामने क्लास की 

पहली पंक्ति मे बैठना उसका और 

फ़िर मुझे देखकर शर्माना उसका,

मै चुपचाप गीत गुनगुनाया करता था 

जैसे कोई प्रेम की धारा 

चेहरे पर बहाया करता था ।


जानकर सबको हैरानी थी 

मै दीवाना हूँ या फ़िर वो दीवानी थी 

मै फलो का राजा 

वो सब्जी की रानी थी,


वो आधी छुट्टी मे मिलना 

वो मिलकर साथ खाना 

सब प्रेम अहसास के परिंदे थे 

अब तो मुझे भी 

यकीन हो गया था कि 

शायद अब प्रेम का अहसास हुआ था 

तभी तो दीवाना-मस्ताना खेल हुआ था ।


उसका वो छूट्टी मे घर जाते-जाते 

हर बार, बार-बार मुढ़कर देखना 

वो खाली कॉपी का बहाना 

कभी पेन्सिल का बहाना 

मुझे प्रेम की ओर ले जाना 


जब नहीं दिखती थी मुझे वो कहीं 

तब मुझे छात्र मुझे परख पाते थे 

'आज वो आई नही' ऐसे बहाने आते थे 

मैडम हो या सर,

सब मुस्कुराते थे


यही जीवन है यही प्रेम है

प्रेम का अहसास ही प्रेम का जीवन है।


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