प्रातः दर्शन
प्रातः दर्शन
जागो राम दृग खोलिये,
अरुणिमा चँहु ओर।
मंद-मंद, पवन वह रही,
सुहावनो हैं, भोर।
कोयलिया कूक रही,
सरजू दें हिलोर।
वंदी जन करै गायन,
रहे कर जोर।
जागो राम राघव,
जागो चितचोर।
सावलों, सलोनो देह,
हर्षित मन मोर।
जागो राम दृग खोलिये,
अरुणिमा चँहु ओर।
मंद-मंद, पवन वह रही,
सुहावनो हैं, भोर।
कोयलिया कूक रही,
सरजू दें हिलोर।
वंदी जन करै गायन,
रहे कर जोर।
जागो राम राघव,
जागो चितचोर।
सावलों, सलोनो देह,
हर्षित मन मोर।