प्रार्थना।
प्रार्थना।
सर्वस्व तुम ही हो मेरे स्वामी, तभी कहलाते अंतर्यामी।
सब कुछ छोड़ दिया तुम पर ही, जाऊँ कहाँ तजि शरण तुम्हारी।।
प्रयत्न किए मैंने बहुतेरे, कभी न होते पूर्ण मेरे।
तुम ही बता दो अब प्रभु मेरे, करता प्रार्थना सांझ-सवेरे।।
समरथ का क्या दोष गुसाईं, तुम्हारी लीला समझ न पाई।
हम तो ठहरे कुटिल और कामी, तुमसे फिर भी आस लगाई।।
कल्याण कर्ता तुम को ही माना, मात-पिता सम तुमको जाना।
चाहत है तुम्हारी कृपा की, नहीं आता मुझे प्रेम निभाना।।
तुम सम दाता न इस जग में, कृतार्थ कर देते पल भर में।
"नीरज" हार चुका जीवन से, प्रकाश भर दो मेरे दिल में।।
