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Diwa Shanker Saraswat

Romance Classics

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Diwa Shanker Saraswat

Romance Classics

पनघट

पनघट

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भोर भयो

सखि चल पनघट पे

सुन धुन मुरली की

छोरा नंद को


आ पहुंचो पनघट पे

दीवानी हम प्रेम में

सखियां किशोरी की

प्राणों में बसे

नंदलाल हमारे हैं


सहस्र घटों में भरा नीर

एक रवि का बिंब

सभी में समाया है

सभी सखियों का श्याम

वो नंद का लाला है

भोर भयो

सखि चल पनघट पे

मुरली की पुकार पर

वारा ये जीवन


यही चाह मन में

रात्रि चांदनी में

रचा लूं रास

दे हाथों में हाथ


साथ नंद का लाल

मुरली बुलाती हमको जिसकी

नित्य पनघट पे।


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