पंचशील
पंचशील
पंचशील जीवन का मूल
अपनाओ इन्हें करो न भूल
जीवन को करते अनमोल
पंचशील के सुन्दर बोल
अहिंसा का है पहला भाव
जीव पीड़ा का रखो अभाव
मन,वचन,कर्म से अपनाओ
जीवन को सफल बनालो
अस्तेय का है द्वितीय भाव
चोरी न करो यही सुभाव
मेहनत से बनो योग्य
यही है इसका मूल स्वभाव
ब्रह्मचर्य है तृतीय भाव
करो इसका पालन हर बार
मन और कर्म से जुड़कर
बनता ब्रह्मचर्य का प्रभाव
सत्य है चतुर्थ भाव
जिससे मिटते सब संताप
मन म
ें होता संतुष्टि का भाव
मुख पर होता अजब प्रकाश
नशा मुक्त है पंचम भाव
मन को देता जो संताप
छोड़ नशा हर लो संताप
जीवन में हो फिर विलाप
बुद्ध कहते रहे सदा
जिसने स्वयं को पहचाना
उसने बोधिसत्व को जाना
यही है बुद्ध की पहचान
अपने अंतर्मन में जाकर
स्वयं पहचानो स्वयं से मिलकर
यही है बोधिसत्व का ज्ञान
जिससे होता जग कल्याण
एक बार खुद को पहचानो
बुद्ध को खुद में तुम जानो
कर लो जीवन का संधान
होगा नहीं फिर अवसान।