पल पल बदलता मैं
पल पल बदलता मैं
पल पल बदलता मैं
जब मैं इस संसार में आया
रोया था बड़ी ज़ोर ज़ोर से
माँ ने मुझको दूध पिलाया
देख रहा उसे बड़े गौर से ।
दो महीने का हुआ मैं
हँसता, जब माँ मुझको देखे
सोना, खाना, रोना, हँसना
ज़िंदगी कट रही बड़े मजे से ।
छठे महीने बैठने लगा
घुटनों के बल लगा था चलने
मैं आगे, माँ मेरे पीछे
अजनबियों से लगा था डरने ।
चलूँ पलंग का सहारा ले अब
दुनिया देखूँ, इच्छा मन में
रात को तारे, चंद्रमा और
दिन में सूरज नील गगन में ।
कोई बुलाए तो चिपकूँ माँ से
पर किसी से झट में घुल मिल जाता
बुद्धि से थोड़ा समझ गया था
इनसे मेरा कोई रिश्ता नाता ।
मगन खेल में दिन रात मैं
जो चाहूँ झट से मिल जाए
परिश्रम करना पड़े ना कोई
भाई, बहन का संग मुझे भाए ।
चार वर्ष जब बीत गए थे
विद्यालय में तब करी पढ़ाई
शिक्षकों का मैं बहुत लाड़ला
ना करता था कभी लड़ाई ।
माता पिता चिंता में रहते
पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगता
गलियों में कंचे खेलूँ मैं
घर में ना बैठूँ नटखट था ।
दसवीं का बोर्ड सख़्त था
साथ अपने तनाव ले आया
पढ़ पढ़ तीन वर्ष थे बीते
मेडिकल में प्रवेश था पाया ।
मिले दोस्त, इतने अच्छे सब
दिनभर जमघट वो लगाऐं
कभी पढ़ाई हम करते ना
लगता था अच्छे दिन आए ।
फिर जब परीक्षा का दिन आया
दिल कहे घोर विपत्ति आयी
दिन में घबराहट, रात को नींद ना
पास हुए, थोड़ी शान्ति पाई ।
वो दिन मेरे स्वर्णिम दिन थे
वो तो याद आज भी आएँ
रंग बिरंगी ख़ुशियों से भरे थे
वो दिन कैसे वापिस लाऐं ।
विवाह हो गया, पत्नी भी डाक्टर
अस्पताल एक खोल लिया था
रोगी देखते दिन रात हम
अपनों को समय कम दिया था ।
नयी पीढ़ी आने का समय था
लग गए परवरिश में उनकी
संसार चक्र फिर से घूमा और
जी लिए यादें बचपन की ।
बहुत समय ऐसे ही बीता
अब प्रकृति हमें बुलाए
घना जंगल, अपार समुंदर
गंगा किनारा और पर्वत भाएँ ।
गौमुख, तपोवन ना भूलते
चूरधार की पदयात्रा याद है
चन्द्रशीला, तुंगनाथ और
जो चार धाम किए उसके बाद हैं ।
कोरोना शिक्षा दे गया
मृत्यु से कोई बच ना पाया
अध्यात्म की और चल दिए
आत्मवृक्ष की लेने छाया ।
रामायण पढ़ी, पढ़ी भागवत
आतुर और पुराण पढ़ने को
कहते हैं ग्रंथों में ही ज्ञान है
तर जाता इनको पढ़ ले जो ।
मन के द्वन्द घटे ना प्रारंभ में
थोड़े आनन्द से फिर हुआ सामना
जैसे जैसे उमर बीत रही
परमानंद की हृदय करे कामना ।
दिन बीते, बीते वर्ष भी
पाँच दशक बीत गए ऐसे
भविष्य में क्या हो कोई ना जाने
मैं भी इसको जानूँ कैसे ।
सोचूँ कि समर्पित करूँ सब उसको
जीवन में जो मिला, मिलेगा जो भी
सब कुछ उसपर छोड़ दूँ अब तो
उसकी माया जाने वो ही ।
