पिता को सलाम
पिता को सलाम
गर्म साँसों को जब आराम देता हूं
मैं सुकूं के लिए पिता का नाम लेता हूं।
नंगी आंखें कहा इतनी काबिलआपको देख सके
मैं हर माहौल में आपकी मौजूदगी पहचान लेता हूं।।
आपकी झलक को समा लिया अपने अंदर
तन्हाई मे आपको मैं याद करता हूँ।
बेवक्त कोई कन्धा ने दे बाप को
मैं अकेले मे यही फ़रियाद करता हूँ।।
इतना काबिल कहा था कि पगडी सम्भाल सकू
रिश्तेदारी, रीति रिवाज अब मैं सब तामझाम करता हूँ।
है एक बड़ी दुनिया जो रब को याद करती हैं पहले
मैं तो आपका नाम लेकर सारे काम करता हूँ।।
आँखों की नमी को मेरी कमज़ोरी ना समझ ले दुनिया
अश्कों से आँख मिचौली सरेआम करता हूँ।
खुशनसीब है वो जिनके सर पर छत है " अजीत"
मैं हर पिता की शख्सियत को सलाम करता हूँ।।