सीख रहे हैं
सीख रहे हैं
सीख रहे हैं हम उससे
समय में घुलना
बरसना
झड़ रहे हैं धूल सा
विचारों से संतृप्त
शरीर पर
इतना कि एक जमीन सी
बन गयी विचारों की सतह पर
जिसमे उग सकते हैं
नये विचार
जीवन से
होश भरे
और बदल सकते हैं
उसी की तरह हर पल
वैचारिक संदूषण की ऊब में
कोई ताजा हवा सा झुरक सकते हैं
मनुष्य होने की जिम्मेदारी
अपनी मनुष्यता के साथ।