पिता हमारे भाग दो
पिता हमारे भाग दो
जब कही कभी परेशान हो जाता ख्वाबो और ख्यालों
यादो मन के भावों पर छा जाते
भटक जाऊं मूल्यों के जीवन पथ से राह दिखाते।
पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।
याद हमे है बचपन अपना मैं उनके सपनों का संसार।
मेरी खुशियों की खातिर जाने कितने कष्ट उठाते
ना थकते ना हारते हर कदम नया उत्साह
पिता हमारे भगवन मैं उनकी संतान।।
जब तक रहते साथ जीवन सरल सुगम कठिनाई का ना नाम।
जब कभी भी मन मस्तिष्क नज़रों से ओझल हो जाते
जीवन राहो में अँधेरा हो जाता दुर्गम जीवन हो जाता
झट प्रत्यक्ष मन मंदिर में प्रगट हो जाते
जीवन के अंधेरों में उजाले की दीप जला कर हो जाते अंतर्ध्यान
पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।
मेरा सामर्थ उनका आर्शीवाद माद्री ताकत सम्बल
उनका आर्शीवाद पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।
बचपन में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
जीवन के कुरु क्षेत्र में कर्म ज्ञान का जगाया
जीवन मूल्य मतलब सिद्धान्त बताया हारना नहीं ज़ीतना सिखाया।
गिरना नहीं सम्भलना सिखाया नीति नियत
ईमान का दिया ज्ञान फिर भी उनको लगता अब भी।
मैं बच्चा हूँ अबोध पल प्रहर दिन रात मेरी सुख दुःख की चिन्ता करते
निवारण का पराक्रम का धन्य धरोहर ध्यान
पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।