पिता है वो मेरा
पिता है वो मेरा
घर की नींव -नींव रखता है,
बोझ सारे उठा लेता है,
पिता है वो मेरा,
लाखों दर्द सहता है,
फिर भी उफ़ तक न कहता है।
लिपटे हैं पानी देह से,
पंखे नहीं झालता है,
बाद उसके भी कहता है,
रहने दो कुछ देर और,
सूख जाता है,
पसीने से लतपथ वो इंसान ही मुझे भाता है।
नहीं देखा मैंने उसे टूटते हुए,
हौसला बुलंद उसका होता है,
होगा अगर टूटा कभी,
देख मेरे मासूम से चेहरे को,
काम वही फिर से करता है,
पिता है वो मेरा, हर वक्त चलता रहता है।
कहते हैं समय से कोई जीता नहीं है,
पर एक शख्स रोज,
सुबह से शाम, शाम से रात,
चल समय से भी आगे,
हर एक फर्ज निभाता है,
पहन कर्तव्य की पगड़ी,
दिन-दिन वो जीता है,
लड़ता है, कुछ न कहता है,
पिता है वो मेरा ,
बन दीवार परिवार का,
हर वक्त खड़ा रहता है।
वह व्यस्त भरा रहता है,
थका हारा दिन भर का होता है,
पर वक्त एक परिवार का उनका होता है,
पिता है वो मेरा,
समय का पल-पल जिता है।
पुर्जा-पुर्जा टूटता है,
कराह-कराह चीखता है,
उफ़ न कहता है,
पिता है वो मेरा,
एक शब्द न कहता है।
जीने को मेरा सपना स्वयं जलता है,
रब है वो मेरा,
टुकड़ों में बिखरकर,
टुकड़े-टुकड़े समेटता है,
पिता है वो मेरा,
उसमें रब दिखता है।।