सुप्रभात
सुप्रभात
उगता हुआ सूरज जग को रौशन करता,
सारे जग को जगमग करता।
उषा की एक किरण धरती पर पड़ती,
भोर होती, चिड़िया चहकती,
सुंदर सुमन की देह महकती,
संसार समस्त खिल उठता।
बोली घर की गुड़िया,
माँ ला दो न एक प्यारी,
सुंदर-सी चिड़िया।
ज्यों लालिमा नभ पर छाया करता,
दिखा आज है माँ के लाडले पर।
क्या प्रसन्नचित्त समीर की लहर दौड़ पड़ी,
मन मुस्काया, दिल बहलाया,
रज का कण-कण झूम कर नाचता गाया।
कान्तिमय हुआ कोना - कोना,
दृश जहाँ खारा सोना।
मिश्री-सी मिठास पवन के झोंके की,
क्या बात निराली स्नेह चमन की।
मंद गति की नदिया चल रही, लहरे हुई हैं शान्त,
उड़ रही पेड़ों की पत्ती,
बन गयी है प्रकृति चारु बागान।
मिजाज हुआ शायराना,
फूलों की कलियाँ बोल रही,
कयामत आज कुदरत का ढाना।
इश्क़ हुआ है कातिलाना,
पंक्ति-पंक्ति बयाँ कर रही,
तेरी जिस्म मीठी, पान भी मीठी,
तेरे छूने से प्यासी जाम भी मीठी।
उगता हुआ सूरज नई आशा घोल रहा,
सपनों का शहर आँखें खोलकर कह रहा,
कतरा- कतरा बोल रहा।।