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Sunil Kumar

Abstract

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Sunil Kumar

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फुरसत

फुरसत

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जीवन की इस भाग-दौड़ से 

जब थोड़ी-सी फुरसत पाता हूं 

बंद कर पलकें अपनी

बचपन की यादों में खो जाता हूं।

इक पल को सब कुछ भूल कर

मैं भी बच्चा बन जाता हूं

भूली-बिसरी यादों संग 

मंद-मंद मुस्काता हूं

जीवन की इस भाग-दौड़ से 

जब थोड़ी-सी फुरसत पाता हूं।

गांव की वो गलियां 

कल-कल करती नदियां

बंद आंखों से देख आता हूं

जीवन की इस भाग-दौड़ से

जब थोड़ी-सी फुरसत पाता हूं।

अम्मा की वो लोरी

दोस्तों की हंसी-ठिठोली 

सब दिल के करीब पाता हूं

जीवन की इस भाग-दौड़ से

जब थोड़ी-सी फुरसत पाता हूं।



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