फ़र्ज़
फ़र्ज़
फ़र्ज़ अपना यों निभाना आ गया ।
राष्ट्रहित में सर कटाना आ गया ।।
हर तमस का चीरकर सीना हमें,
दीप आँधी में जलाना आ गया ।
भूलकर संत्रास - कुण्ठा की व्यथा,
जिन्दगी में मुस्कराना आ गया ।
लूट - हिंसा - अपहरण के दौर में,
शान्ति का झण्डा उठाना आ गया ।
झूठ के साम्राज्य का होगा पतन,
सत्य का दर्पण दिखाना आ गया ।
नेह-सरिता के सलिल से सींचकर,
फूल मरुथल में उगाना आ गया ।
छल कपट मद लोभ के वटवृक्ष को,
काटकर जड़ से मिटाना आ गया ।