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Yogeshwar Dayal Mathur

Abstract

4  

Yogeshwar Dayal Mathur

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फोन कॉल्स

फोन कॉल्स

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शुरुवाती दौर था लॉकडाउन का

सबसे दूर रहने और ना मिलने का

घरों में बंद रहने का


अपनों और दूर दराज़ के सिर्फ फोन कॉल्स का

हर रोज़ बहुत कॉल्स आया करते थे

हम दोनों की खेरियत पूछा करते थे।  


बहुत कुछ अपनी ही कहते थे

फिर कुछ हमारी भी सुन लेते थे

बड़ी देर तक बातें होती थीं।

कॉल्स भी बड़ी लंबी होती थीं।


अकेले नहीं हो आप,

हम आपके साथ हैं।

यह अहसास हमें करा देते थे।

फिर लॉकडाउन का समय बढ़ता गया


और कॉल्स का आना घटता गया।

फोन पर गुफ्तगू एक जैसी होने लगी।

हम ठीक हैं और आप दोनों कैसे हो ?


कॉल्स बस इसी पर खत्म होने लगी।

लॉकडाउन का समय कुछ और बड़ा।

कॉल्स का सिलसिला कुछ और घटा 


तब अकेलापन महसूस हुआ।

ये जिंदगी भी अजीब थीं, लोगों के बिना ?

मन दुखी और बेज़ार हुआ ।

सोचते रहे और तसल्ली दी खुद को।


थमी नहीं ज़िंदगी कभी किसी खेरख्वाह के बिना

मगर क्या करें, ये गुजरती भी तो नहीं 

कम्बक्त फोन कॉल्स के बिना।


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