फितूर
फितूर
इश्क़ का फितूर इस कदर चढ़ गया यारों
पहली मुलाक़ात में मुतासीर कर गया यारों
उसकी तिश्नगी सर चढ़ कर बोली हमारे
इबरत-ए-जिंदगी वो दे गया यारों
इश्क़ का फितूर इस कदर चढ़ गया यारों
उसका अपनाना एक रस्म मात्र रह गया यारों
मोहब्बत का आबशार आखिर थमता कब तलाक
बेधड़क हवाओं सा वो बह गया यारों
इश्क़ का फितूर इस कदर चढ़ गया यारों
शग़फ़-ए-हक़ीक़त कहीं खो गया यारों
खौफ तो समर का रहा नहीं दिल को
कुछ इस तरह रब्त उनसे हो गया यारों