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Vipul Borisa

Drama

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Vipul Borisa

Drama

फितरत

फितरत

1 min
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मैं वो मौसम नहीं,

जिस की फितरत बदल जाती है ।

मैं वो काली रात हूँ,

जो हर सुबह के बाद आती है ।।


चंद सिक्कों के लिये बेच देता है,

वो अनमोल दुआएँ ।

पर उस फकीर की झोली में,

सिर्फ खैरात आती है ।।


जब कभी भी सोचता हूँ,

अब इश्क़-प्यार के बारे में ।

ना चाहते हुए भी,

लब पे तेरी ही बात आती है ।।


इक ज़ख्म जो दिखता नहीं,

पर नासूर बन गया है ।

अब सीने पे नज़र जाती है,

तो तेरी याद आती है ।


कुछ अजीब-सा रिश्ता,

हो गया है मेरा खुद से ।

होता हूँ भीड़ में फिर भी,

तन्हाइयाँ साथ आती हैं ।।


कुछ किस्से तेरे मेरे मैंने,

बड़ी हिफाज़त से रखे हैं ।

जब भी टटोलता हूँ,

यही दौलत मेरे हाथ आती है ।।


मैं जानता था तुझे हासिल करना,

नामुमकिन ही था ।

कुछ रिश्तों की समझ,

टूटने के बाद ही आती है ।।


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