फिसल रहे हैं
फिसल रहे हैं
बिताए लम्हे जो साथ हमने, हसीं वो पल क्यूँ फिसल रहे हैं
ये पल में खो जाएगें हसीं पल ,कैसे मुट्ठी से निकल रहे हैं।
दुआ ये करना बुझा न दे कोई,ये रोशनी के सिलसिले हैं
ये चाँद -सूरज ये आसमां मेरे साथ ही साथ चल रहे हैं।
थकन से हम हारते नही हैं ,के राहे भी सुस्ताने लगी हो
ख़ुशियां तो अपने साथ चलेगी, फिजाओं में जैसे पल रहे हैं।
वहम कैसा पाले हुए हैं अंधेरे यहाँ उजाले वहाँ हुए हैं
हमारी नींदे भी उड़ चुकी हैं सनम भी करवट बदल रहे हैं.
हैं रान हूँ आग में हीरा बन के और ज्यादा निखर रही हो
के एक हमी हैं विरह के दुःख में हिमखंड से पिघल रहे हैं।
वक्त के हाथों से लोग लाचार जो न जाने कहाँ वो गए हैं
जो स्वार्थी बच गए बाज़ार में मगर वो तो चल रहे हैं।
तुम्हारी फ़िक्र लगी हैं "नीतू" न जाने कौन से पल आख़री हो
ज़िस्म से रूह जायेगी निकल जैसे के लिबास बदल रहे हैं।