पगड़ी संभाल जट्टा
पगड़ी संभाल जट्टा
ऐसा ही कुछ सोच था सरदार भगत सिंह जी का.
बैठे थे कोठरी मे, मौत के सजा भुगत ने के लिए.
अकेले थे. लेकिन निडर थे.
मौत को आंख मे आंख डाल कर देखते हुए.
अपने भीतर का मालिक से सवाल करते हुये,
"अखिर ऐसा क्यूँ", जवाब निशब्द होगा, जानते हुए.
अंत समय मे, गर्व से कहते हुए,
पगडी सम्हाल जट्टा, पगड़ी सम्हाल ओए.
यूँ देख मौत घबरा गया था,
यूँ होते हैं हिंदुस्तानी,
चुनती देते हुये, स्वीकारते हुए।