पेड़
पेड़
तुमने कुल्हाड़ी क्यों मारी मुझे
पीड़ा हुई सच में भारी मुझे
मैंने तुम्हारा किया क्या बुरा
हरदम किया हैं सबका भला।
हर वक़्त मैंने सम्हाला तुम्हें
मौसम के सांचे में ढाला तुम्हें
पानी हवा के थपेड़े सहे
धूप और बारिश के रेड़े सहे।
ठंडी हवाओं से पूछो ज़रा
काली घटाओं से पूछो ज़रा
मैंने तुम्हारा....।
हमें इस तरह जो मिटाओगे तुम
पूरी ज़िंदगी पछताओगे तुम
हमी से धरा खूबसूरत लगे
हमी से तो मेलों के झूले सजे।
कितने ही जीवों को, पाले हैं हम
धरा के भी तो, रख वाले हैं हम
मैंने तुम्हारा...।
हमें तुम ज़मीं से उखाड़ो नहीं
सीने को आरी से फाड़ो नहीं
प्यारी सी शाखों को काटो नहीं
ठूँठा बना के बांटो नहीं।
हमसे ही सांसों में अमृत घुले
मिट्टी के सीने में अंकुर पले
मैंने तुम्हारा...।
तपती धरा पे सहारा हैं हम
डूबते को मिले वो किनारा हैं हम
हमारी ही शाखों की बंशी बजे
हमारे ही फूलों से राधा सजे।
नहीं कोई भेद जाती पाति का हो
धर्मो का हो न कोई ख्याति का हो
मैंने तुम्हारा...।
हम पे करें नाज़ धरती गगन
तितली ओ भौरे हैं हम पर मगन
रसीले फलों की हम ही खान हैं
जाने कितने ही जीवों की हम जान हैं।
हम पे नज़र बुरी डालों नहीं,
हमें प्यार दो हमको टालो नहीं
मैंने तुम्हारा...।
फूलों की सेज सजाते हैं हम
अर्थी में भी काम आते हैं हम
हम ही से बनाते हो तुम औषधि
हम ही से तो घर को सजाते हो तुम।
वीर भूमि पे हम यूं ही सजते रहे
शवों पर शहीदों के चढ़ते रहे
मैंने तुम्हारा....।
जीवन की ज्योति जलाते रहो
पेड़ों को हरदम लगाते रहो
परोपकारी बनने को कहते है ये
सिर्फ देते हैं कुछ भी न लेते हैं ये।
चिताओं को ये तो जलाते रहे
मर कर भी ये काम आते रहे
मैंने तुम्हारा...।
