पड़ोसी
पड़ोसी
पहले पड़ोसी के होते थे मायने
जो दिखलाते थे सही आइने
हर दुख तकलीफ में खड़े रहते थे
अपनो से पहले वही अड़े रहते थे
पड़ोस का घर होता अपना ही घर
बड़े शहरों में ये सब रहा नहीं
पड़ोस का घर तो है,
पर पड़ोसी कभी दिखते नहीं
यह भी नहीं पता चलता है
की उसमे कौन रहता है
सब अपने ही गुमान में
जिंदगी के तूफान में व्यस्त हैं
पड़ोस का घर छोड़ अपने में त्रस्त हैं।