पाखी तुम उड़कर जाना
पाखी तुम उड़कर जाना
पाखी तुम उड़कर जाना
मन मंदिर में ज्योत जलाना।
धरती का कण कण पवित्र है
अनसुइया,सीता,राम चरित्र है।
फिर क्यों करते वाद-विवाद ?
सबके अंदर प्रीत जगाना।
पाखी तुम उड़कर जाना
मन मंदिर में ज्योत जलाना।
रूप- रंग- भाषा अलग है
साथी सारे सत्य सजग हैं।
फिर यह कैसी संकीर्णता ?
सबके अंदर करुणा जगाना।
पाखी तुम उड़कर जाना
मन मंदिर में ज्योत जलाना।
सूरज की रोशनी समान है
नदिया जल सींचे समान है।
फिर यह कैसा भेद भाव ?
सबके अंदर अपनत्व जगाना।
पाखी तुम उड़कर जाना
मन मंदिर में ज्योत जलाना।
