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Nisha Nandini Bhartiya

Abstract

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Nisha Nandini Bhartiya

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पाखी तुम उड़कर जाना

पाखी तुम उड़कर जाना

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पाखी तुम उड़कर जाना

मन मंदिर में ज्योत जलाना।


धरती का कण कण पवित्र है 

अनसुइया,सीता,राम चरित्र है। 

फिर क्यों करते वाद-विवाद ?

सबके अंदर प्रीत जगाना।

पाखी तुम उड़कर जाना

मन मंदिर में ज्योत जलाना।


रूप- रंग- भाषा अलग है 

साथी सारे सत्य सजग हैं।

फिर यह कैसी संकीर्णता ?

सबके अंदर करुणा जगाना।

पाखी तुम उड़कर जाना

मन मंदिर में ज्योत जलाना।


सूरज की रोशनी समान है 

नदिया जल सींचे समान है।

फिर यह कैसा भेद भाव ?

सबके अंदर अपनत्व जगाना।

पाखी तुम उड़कर जाना 

मन मंदिर में ज्योत जलाना।



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