ओ साथी रे
ओ साथी रे
भीड़ में तनहा हूँ,
ओ साथी रे आजा,
मन है तनहा,
अधीर आकर उसमें सम जा।
इस रंग बदलती दुनिया में,
जहाँ कोई नहीं है किसी का ,
मेरा हाथ थाम,
मुझे उस पार लग जा।
नहीं माँगता खेल खिलौने,
नहीं माँगता पैसा गाड़ी,
माँ के आँचल का वो अनुभव,
अब तू मुझे कराजा,
ओ साथी रे आजा।
क्या पाया हूँ,
क्या पाऊँगा ?
क्या खोया हूँ,
क्या खोऊंगा ?
मेरी इच्छा,
मेरी अभिलाषा पर,
इक अंकुश लगाजा,
ओ साथी रे,
हूँ में तनहा, अकेला,
मेरा हाथ थाम मुझमें समा जा।
इस अपूर्ण खंड को,
इस दहकती देह को,
बरसकर शांत कर।
मन में उठे सैलाब को,
आज समझ ,
दिल दहकता है,
मन बिलखता है,
उन चीखों से,
उस दनुता से।
दानवों का नाश कर,
सबको प्रेम का पाठ पढ़ा जा,
धर्म का मार्ग दिखलाजा।
ओ साथी रे,
मेरा हाथ थाम,
तनहा हूँ अकेला,
उस पार लगा जा,
आजा...