नया सवेरा
नया सवेरा
तारों की सिमटी है चादर सूरज निकला छटा अंधेरा
फूटी है तरुणाई सी यह नयी भोर है नया सवेरा।
किरणों ने बाहें फैला कर धरती से यूं प्रेम जताया
मैं तेरे घर आंगन में हूं स्नेह स्पर्श से उसे बताया।
धरती के भी रोम-रोम ने खिल कर उसका माथा चूमा
दोनों के इस प्रेम मिलन से सब जग का हर कण-कण झूमा।
दोनों के अद्भुत संगम ने देखो कैसा विश्व रच डाला
ए मानव तुम भी जग जाओ तो हो जाए पूर्ण उजाला।
तुम कर्मठ, वेदों के ज्ञाता, अतुल साहसी, धीर बनो
कुछ ऐसा रच डालो तुम भी कि जग की तकदीर बनो।
ऐसा कुछ कर डालो कि स्वार्थमना मुक्ति पा जाए
आज कृतज्ञता के हाथों कृतघ्नता धोखा खा जाए।
अपनी धरती अपना अंबर और अपनी तस्वीर बनाओ
लाख जतन कर भी ना टूटे एक ऐसी जंजीर बनाओ।
मानवता का चक्का लेकर उसमें इसको बांध भी डालो
ए मानव कर सकते हो तुम जो मन में कुछ ठान भी डालो।