नया साल है क्या नया
नया साल है क्या नया
ज़िंदगी के पेड़ से
एक और पत्ता गिर गया
पलट चला ये भी सफ़ह
साल एक गुज़र गया
लफ्ज़ जुड़ते लफ़्ज़ से
बन चलीं नज़्में कई
बज़्म उठने को है अब
शमअ का लौ ढल गया
हारने अब हम लगे
अब कहाँ वो हौसले
अब दरकते हैं किले
एक खंभा ढह गया
जब जुड़ें सफ़हे कई
फ़लसफ़े बनते नए
साल भर देखा जहां
सीख नई देकर गया
सूरज वही चंदा वही
आसमां तारे हवा
और वहीं पर है जमीं
आया क्या और क्या गया?
आए कैलेंडर नया
क्या नया उसमें छपा
फिर वही है ज़िंदगी
साल आया और गया ?