STORYMIRROR

हनुमंत hanumant किशोर kishor

Drama

2  

हनुमंत hanumant किशोर kishor

Drama

नुक्ता और बुक मार्क

नुक्ता और बुक मार्क

1 min
337


हर्फ़ की तरह लकीर से बंधा नहीं हूँ

आज़ाद हूँ

हाँ अदना भी जरुर हूँ।


किसी वर्णमाला में शुमार नहीं

लेकिन नाशुमार होकर भी

फ़र्क बेशुमार पैदा करता हूँ।


इतिहास में जगह बेशक ना मिले

लेकिन मेरी नुक्ताचीं

इतिहास बदल देती है।


ये तख्तो ताज़

ये पुल ये इमारत

ये हासिल सब ज़माने का।


इन्हें कुरेदो अगर

तो सिवाय नुक्ते के

कुछ नहीं पाओगे।


तो नुक्ता हूँ ज़नाब

कोई साहब या

मुसाहिब नहीं हूँ।


हर्फ़ से कहो

मेरे आगे औकात में रहें

वर्ना जलील को

ज़लील होते देर नहीं लगती।


वो जो ख़ुदा है

वो भी नुक्ते के

रहमो करम पर है..


कायनात क्या है ?

एक नुक्ते से

दूसरे नुक्ते तक

मुसलसल सफ़र ही तो है।।

........................


कुछ लिखा नहीं मुझमें

मुझमें तुम क्या पढ़ोगे ?

बस मैं इतना बताऊंगा तुम्हें

कि पढ़ना यहाँ से शुरू करना है..


दलित हूँ

अच्छा हूँ मगर

ज़िल्द की तरह ललित

या ब्लर्ब की तरह छलित नहीं हुआ..


पन्नो में बीच

फूल की तरह दबकर

सिर्फ याद में दाखिल नहीं हुआ...


तिलचट्टे की तरह दबकर

लिखे को बर्बाद नहीं किया

क्या हुआ

गर किताब नहीं हुआ...


किताब को कई बार

पूरा-पूरा पढ़ तो लिया...



Rate this content
Log in

More hindi poem from हनुमंत hanumant किशोर kishor

Similar hindi poem from Drama