नशा....
नशा....
ये दुनिया दिखलाती है कई तरह का नशा,
कभी ज़िन्दगी जीने का नशा,
कभी किसी मे सपने सजाने का नशा,
कभी कोई करें भूक मिटाने का नशा,
किसीको अपनी प्यास मिटाने का नशा,
कोई अपनी गम भुलाने करें नशा,
कोई अपने खुशियाँ बांटने को करें नशा,
कोई प्यार मे पागल हो के बढ़ाये अपनी दिल का नशा,
कोई किसी से बिछड़ के करें गम का नशा,
कोई अपनी संसार बढ़ाने करें सोच का नशा,
कोई पाठशाला जाये करें पढ़ने का नशा,
कोई अपनी मंज़िल तय करके करें उसे पाने का नशा,
ये नशे है अलग अलग पर होते है नशा।
कोई प्याला भरे मदिरा मे करता है नशा,
कोई प्याला भरे दूध पी के
भरे मन का नशा,
कोई प्याला भरे पानी से प्यास मिटाने का करता नशा,
पर वो प्याला तो है कभी करता नहीं नशा,
क्योंकि वो बेजान है नहीं करती जीने का नशा.
पेड़ो मे फूल खिलते फैलाने खुशबू का नशा,
भामरे गुन गुनाते बढ़ाते अपने रिश्तों का नशा,
ठंडी हवा का झोका देता गर्मी से राहत का नशा,
सावन भी बरसता है उसे मिटी को छूने का नशा,
लहर समंदर का अपनी सीमा मे रहता, उसका सम्मान का नशा,
साँज को पंखिया साथ उड़ते ये अपना पन का नशा,
जानवर भी शिकार ढूंढते ये उनका मज़बूरी का नशा,
आंधी आती है बिध्वंस का लीला रचाने का नशा,
सब करते अपने तरीके से अपने अपने नशा,
पर ये दुनिया सब देखता है नहीं करता नशा,
प्याला हो प्रकृति हो या दुनिया सब कराते नशा,
क्या हम इनसे सीखे कुछ करवाने का नशा,
कुछ सोच के कुछ ठान ले तो जागेगा बदलाव का नशा.
नशा है एक पर दिखता अलग जैसा,
सब अपनी नशे मे ढूंढ़ते अपना दिशा,
सब तरहा तरहा का करते नशा,
पर किसी का बस मे नहीं आता ये नशा,
कभी किसी के पास नहीं आता है नशा,
उसका सोच दिल से उतरके दिमाग़ मे फैलता नशा,
ये कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा बनके नशा।