नफरत की दीवारें तोड़ें
नफरत की दीवारें तोड़ें
नफरत की दीवारें तोड़ें।
इंसां को इंसां से जोड़े।।
एक सा खून बनाया सबका,
एक सी जान बनाई है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों ,
सबकी छिपी भलाई है।।
हमको जन्म मिला यूं प्यारा,
जनजन को दें सदा सहारा ।।
जितने भी प्राणी हैं जग में,
दर्जा सबसे अलग हमारा ।।
कोई भी हम मज़हब माने।
मानवता के सभी खज़ाने ।।
कभी किसी में वैर भाव की
दिखी नहीं परछाई है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों,
सबकी छिपी भलाई है।।
प्यार सिखाते हैं सब मज़हब,
नफरत किसने सिखलाई कब।
किसने दर्द नहीं समझा है
पैरोकार दया के हैं सब।।
पर पीड़ा को कौन बढ़ाता।
हिंसा से किसका है नाता।।
धरती पे दुख कैसे कम हो
सबनेअलख जगाई है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों
सबकी छिपी भलाई है।।
हम मज़हब के लिए नहीं हैं,
कहो नहीं क्या बात सही है।
हमें जरूरत मज़हब की तो,
अपने हित के लिए रही है।।
कैसे जीवन अपना तारें।
दीनो दुनिया यहां संवारें।।
ठेकेदारों के हम मोहरे,
बने बहुत दुखदायी है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों,
सबकी छिपी भलाई है।।
मनके अलग एक माला है,
प्याले अलग एक हाला है।
"अनंत" रस्ते अलग अलग पर,
मंज़िल पर एक रखवाला है।।
जब जैसी थी जहां जरूरत।
पैगम्बर लाए वो रहमत।।
रेहबर इंसानों के ख़ातिर ,
आए ये सच्चाई है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों,
सबकी छिपी भलाई है।