नन्ही परी
नन्ही परी
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स्वर्ग से ऊतर मेरी चौखट आयी
घर को मेरे स्वर्ग बनाई
मान, लाज, शर्म की बनी पोटली
हृदय कमल में वही समाई।।
सूना था बिन उसके आँगन
खुशियों की लडियाँ वही लगाई
प्यारी सी मेरी बन लाड़ली
भूधरा से मुझको स्वर्ग दिखाई।।
भेद मिटाती बेटे-बेटी का
रूढिवादिता वही मिटाई
सेवा करती मात-पिता की
जब बेटों से धुत्कार उन्होने पाई।।
कौन कहता है बेटी
अपनी नही सदा होती पराई
ध्यान से देखों तो पता चले
सदा, दिल में होती वही समाई।।