नकारपंथ
नकारपंथ
एक असफल पति!
एक असफल पिता!
ज़िम्मेदारियों से भागा,
पुरुष बैठा है बाज़ार में।
विकल्प ढूँढ़ता,
बहाने ढूँढ़ता,
बहुत सारी कर्त्तव्य-
ज़िम्मेदारियाँ भूलता,
अपनी नाकामियाँ कब याद रखता?
याद दिलाने पर
पत्नी से गाली-गलौज,
मार-पीट करता,
गृहस्थी विमुख
नपुंसकता में,
अड़ोसी-पड़ोसी,
लोगों का साहचर्य ढूँढ़ता,
उनकी मदद करता,
सामाजिक होने का दिखावा करता,
अपने एकाकी दंभ में
कभी अध्यात्म ढूँढ़ता,
संसार की सबसे बड़ी
आवश्यकता नकारता।
और मैं सोचती-
दुर्भागी कौन है?
वह स्त्री!
वह पुरुष!
या दोनों के क्षणिक
प्राकृतिक वासना से उत्पन्न बच्चे!
उस स्त्री का पिता!
जो किसी नकारे को चुनता,
पति रूप में!
अपनी बेटी का
वर्तमान और भविष्य सौंपता।
दुर्भाग्य की चरम सीमा
और क्या होगी?
बेटी और उसके बच्चों की
ज़िम्मेदारियाँ ढ़ोने की विवशता।
और इस नकारपंथ में
अधर में लटका
रिश्ते का सुंदरतम संसार
और,
शर्मिंदा अध्यात्म!