नकाब ?
नकाब ?
इंसान को
समझने में हम
इंसान चूक जाते हैं क्यों ?
क्योंकि सिखाया
गया है
जन्म से सबको
कि इंसान की सोच उसे
गढ़ती है
सोच जो बनती है
अनुभव से
अनुभव जो मिलते है
समय के हाथों से।
मगर यह नहीं
बतलाया गया सबको
कि जरूरी नहीं
नई सख्शियत उभरे
धीरे धीरे
कभी कभी
कोई एक साल ,महीना,
हफ्ता और एक दिन
या बस एक पल
बदल देता है
अंतस को।
और लोग अनभिज्ञ
सोचते हैं,
नकाब उतर गया।