STORYMIRROR

Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

4  

Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

नकाब ?

नकाब ?

1 min
219

इंसान को 

समझने में हम

इंसान चूक जाते हैं क्यों ?


क्योंकि सिखाया

गया है 

जन्म से सबको 

कि इंसान की सोच उसे

गढ़ती है


सोच जो बनती है

अनुभव से

अनुभव जो मिलते है

समय के हाथों से।


मगर यह नहीं 

बतलाया गया सबको

कि जरूरी नहीं

नई सख्शियत उभरे

धीरे धीरे


कभी कभी

कोई एक साल ,महीना,

हफ्ता और एक दिन 

या बस एक पल

बदल देता है

अंतस को।


और लोग अनभिज्ञ 

सोचते हैं,

नकाब उतर गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract