निराशा से भरा मन
निराशा से भरा मन
न बदला है न बदलेगा
इस समाज का अत्याचार,
होता आया है होता रहेगा।
नारी सम्मान की खोखली बातें,
होती आईं है होती रहेंगीं।
एक निर्भया तो चली गई,
अब भी रोज नई
निर्भया बनती आई है बनती रहेगी।
न उम्र का लिहाज न समाज का डर
पुरुष जानवर से बदतर
बनता आया है बनता रहेगा
ढेर हो गईं अब सारी आशाएं
बस निराशा और आक्रोश मन में,
पलता आया है पलता रहेगा।