STORYMIRROR

नीर

नीर

1 min
287


नीर तो दिशा न जाने कोई

बहता अविरल भाव लेकर,


सूखे मन की रेतीली मिट्टी पर

बनाता पांव के चिन्ह गहरे,


कभी सत्य का सूर्य दिखाता,

कभी चांद की शीतल छाया,


कभी रोती लोरी बन जाता,

कभी हँसता जश्न मनाता,


बहता अक्षर बन दो नयनों से

बिन बोले ही सब कह जाता,


नीर तो दिशा न जाने कोई

बहता अविरल भाव लेकर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract