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माँ का जन्म

माँ का जन्म

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वो इठलाती, बलखाती

कदमताल

आज ठहरी सी क्यों है!

वो खिलखिलाती नादान हँसी

क्यों मंद सी मुस्कुराहट

बन गई है!


वो आँखों में दिखती थी जो

हठीली लकीरें ,

आज झुकी सी क्यों लगती है!

वो जो कभी इतराते थे अश्रु,

आज सहसा ही क्यों झूम

कर बरस पड़े है!


वो जो देह को लेकर

चिंतित रहती थी सदैव,

आज क्यों कहीं और विलीन है!

कैसा है ये परिवर्तन जो

यकायक ही जाग्रत हो गया है!


जो स्त्रीत्व में कहीं सुप्त था

आज उदीप्त हो गया है!

मन के कोनों से फुसफुसाती

एक ध्वनि कर्णों का भेदन कर गई-

"आज एक माँ का जन्म हुआ है।"



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