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कजरौटा

कजरौटा

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घनी कजियारी रात में आई,

वो काजल की डिबिया,

सब ने देख एक आह भरी,

कैसी है यह गुड़िया!

काजल नाम दिया माँ ने,

गोद में उठाकर,

बोली श्याम रूप है तो क्या,

नक्श तो मिले सजाकर,

किन्तु जग को कैसे भाती,

काजल की कजियारी,

नाम दे दिया उस मासूम को

कजरौटा मेरे भाई

बचपन से जवानी आयी,

पर न नाम यह छूटा,


कजरौटा सुनते सुनते उम्र

का चक्कर बीता,

रो रो काजल माँ को कहती,

क्यों तुमने मुझे जन्म दिया है,

सबने मिलकर काजल को

कजरौटा किया है।

माँ ने सदैव सिखाया बिटिया,

रंग रूप ढल जाए,

गुण कमाई ही सदा जग

में बाकी रह जाए।

काजल ने सबको अनसुना

कर माँ की बात यह मानी,

खूब लगन से सभी परीक्षा

अव्वल दर्जे से उर्तीण की।


पढ़ लिख कर के काजल

तो गाँव की मुखिया बनी।

कजरौटा न फिर किसी के

मुंह की जुबान बनी।

गुण ही मानस की पहचान,

गुण ही शान कहाय,

रूप रंग तो उम्र का धोखा,

समय चले ढल जाए।



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