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Asha Pandey 'Taslim'

Abstract

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Asha Pandey 'Taslim'

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नहीं चाहिए

नहीं चाहिए

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मैंने पीड़ा को जाना है

मैंने पीडा़ को सहा है

पर मैं

पीडा़ को अपनी बातों में

कोई स्थान नहीं देती

जिस टीस को मैंने भोगा है


जिस चुभन को मैंने झेला है

वही रत्ती रत्ती भर

सुनने वाला भी जान सके

असम्भव है,नामुमकिन है

विजय की बात करती हूँ


लौंग, इलायची

जा़फ़रान की बातें करती हूँ

रंग और सुगंध बिखेरती हूँ

दालचीनी के पड़ जाने से


मसाले का रंग और स्वाद क्या होता है

बस इस पर बातें करना चाहती हूँ

उस दुखियारी का मुँह

अचानक आकर

चिपक जाता है मेरे चेहरे से

नहीं चाहती मैं


कोई अपना दुख का उतरन

मेरे दुख के चेहरे पर पसार दे

मैं रोज़ उठकर

अपने गमले में खिले

गुलाब को देखा करती हूँ


सामने का पोखर

और पोखर का गंदा पानी

मेरे कमरे तक हवा के साथ न आ जाये

इसके लिये हर एक खिड़की पर

रख आती हूँ कुछ कपूर।


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