नदी हूँ मैं
नदी हूँ मैं
हाँ, मैं नदी हूँ
सदियों से बहती रही हूँ।
मैंने न जाना रुकना,
ठहरना।
अपनी धुन और लय में,
चलती रही हूँ।
धो लो सारे पाप मुझमें,
कब कुछ कही हूँ।
पहाड़ों से उतरी,
किनारों को सींचती
अपने सागर से मिलने
बेताब बहती रही हूँ।
मैंने न जाना,
लकीरों पर चलना।
स्वयं ही अपना,
रास्ता बनाती बढ़ी
जा रही हूँ।
हाँ, मैं नदी हूँ।
बहती हुई मानों
कोई सदी हूँ।
